डाकू अंगुलिमाल की अद्भुत कहानी-
एक नगर था जिसका जिसका राजा बिम्बिसार था और उसी नागर में आश्चर्यजनक व्यक्ति था । राजा बिम्बिसार से उसका अवैर था राजा उस व्यक्ति का सब कुछ छीन लिया फिर वह व्यक्ति जंगल में चला गया वहां जाकर व्यक्ति न प्रतिज्ञा ली कि मै एक हजार व्यक्ति को मारूंगा। वह व्यक्ति नौ सौ निनानवे(999) को मार चुका था उतने को मारने के बाद उंगली काट कर माला पहनता था इसलिए नगर के लोग उसे डाकू अंगुलिमाल कहने लगे।
जिस जंगल में रहता था अंगुलिमाल उस जंगल का रास्ता ही बंद कर दिया नगर वालो ने और वहां लिख दिया कि इस रास्ते पर जाना मना है क्योंकि अंगुलिमाल रहता है 999 लोगो को मार चुका है सिर्फ एक का इंतजार कर रहा है उसका प्रण है 1000लोगो को मारने का। नगर के सभी लोग डरा हुआ था अब तो राजा भी वहां जाने से डरते थे। डाकू अंगुलिमाल की मां कभी कभी मिलने जाती थी जब सुना की 999 को मार दिया है तो उसकी मां भी जाना बंद कर दिया सोची की कही प्रतिज्ञा पूरी करने के लिए मुझे ही न मर दे। पूरा नगर डरता था अंगुलिमाल के नाम से, नागर वालो ने बोला-अब क्या होगा ?
फिर एक दिन उसी नगर में महात्मा बुद्ध और उनके कुछ शिष्य आते है। कुछ समय बाद आराम कर वे उसी रास्ते पर चलते है तभी महात्मा बुद्ध के शिष्य कहते है गुरुजी इस रास्ते पर मत जाइए यहां अंगुलिमाल डाकू रहता है उसने एक हजार आदमी को मारने का प्रण लिया है और नौ सौ नीनानवे मार चुका है सिर्फ एक को और मारना है।
शिष्य ने कहा- इस रास्ते पर जाना खतरा है कृपया रास्ता बदल लेते है।
महात्मा बुद्ध- अगर तुम नहीं बताते तो संंभवतः इस रास्ते पर न जाता, लेेकीन तुमने बता दिया ही दिया है तो मै अब इस रास्ते को छोड़ने वाला नहीं हूं क्योंकि उसको मेरी जरूरत है। वो साधु ही क्या जो अपना रास्ता ही बदल लें।
महात्मा बुद्ध उस रास्ते पर आगे बढ़े और अंगुलिमाल ने दूर से आते हुए बुद्ध को देखा जब बुद्ध को आते हुए देखा तो अंगुलिमाल बहुत प्रसन्न हुआ और बोला कि आज मेरी प्रतिज्ञा पूरी हो जाएगी । जैसे ही बुद्ध नजदीक आए तो देखा कि इसके चेहरे पर तनिक सा भी भय नहीं बल्कि खुशी व मस्ती स आ रहा है, महात्मा बुद्ध को देख अंगुलिमाल का हाथ कापने लगा
अंगुलिमाल ने बोला- सन्यासी तू रुक जा हलाकि मुझे बड़ी खुशी हो रही है क्योंकि आज मेरा एक हजार लोगो को मारने का प्रण पूरा हो जाएगा। तू वहीं रुक जा।
महात्मा बुद्ध- तो डरता क्यों है मार न मुझे
अंगुलिमाल- मैं फिर कह रहा हूं तू वहीं रुक जा वरना मैं मर दूंगा।
महात्मा बुद्ध- तू भी क्षत्रिय है मै भी क्षत्रिय हूं देखते है कौन किसको मारता है।
अंगुलिमाल- तुम्हे डर नहीं लगता? कि एक आदमी हाथ में तलवार लिए, अंगुलियों का माला धारण किए हुए तुम्हे मारने को तैयार है।
महात्मा बुद्ध- डर किस बात का। तू मुझे मर दे लेकिन मेरा एक सर्त है कि तुम इस पेड़ के टहनी को काट दो।
अंगुलिमाल ने तलवार उठाई और तुरन्त टहनी काट दिया। टहनी तो कट गई लेकिन महात्मा बुद्ध मन ही मन मुस्कुराए और बोले बात तो मैं रहा है यानी इसके विचार बदल सकते है। टहनी कटने के बाद महात्मा बुद्ध बोले कि अब इसे जोड़ दो ।
अंगुलिमाल- सन्यासी तू पागल लगता है, जो कट गया उसे दुबारा नहीं जोड़ा जा सकता।
महात्मा बुद्ध- मै भी तो यही बात रहा हूं की काटना बहुत आसान है लेकिन जोड़ना बहुत कठिन है। तूमने तो नौ सौ निनानवे लोगो को काट दिया मगर एक को तो जोड़कर दिखा।
बुद्ध के इतना कहने पर अंगुलिमाल की आंखो मे आंसू भर आए और अंगुलियों की माला उतारकर बुद्ध के चरणों में रख दिया और बुद्ध पलट गए क्योंकि उनको पता था ये मेरे पीछे आयेगा। अंगुलिमाल बुद्ध के पीछे पीछे चल पड़े। अंगुलिमाल का विचार बदल गया और उसकी पूरी जिंदगी ही बदल गई।
एक विचार आपकी जिंदगी बदलने के लिए काफी है। बहुत से किताबे कहते है कि डाकू अंगुलिमाल बाद में सन्यासी हो गया। यह बात जब राजा बिम्बिसार को पता चला तो राजा बहुत प्रसन्न हुआ और बुद्ध ने अंगुलिमाल से कहा- जा भिक्षा मांगकर ले आओ। अंंगुलिमाल गया, उस घर में भिक्षा मांग रहा था जिनके लोगो को अंगुलिमाल ने मर डाला था फिर लोगो ने पत्थर स उसे मारा। अंगुलिमाल वापस बुद्ध के पास गया बुद्ध ने उसका हाथ छुआ और पूछा पीड़ा हो रही है।
अंगुलिमाल ने कहां- नहीं! पीड़ा तो मन को होती है। पत्थर तो शरीर को लगा है मेरा मन तो एक दम शांत है। अब काहे का पीड़ा, अब तो पीड़ा चली गई।
तो दोस्तो मुझे पूरा उम्मीद है कि आपको इस डाकू की कहानी पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा होगा। मैं इस कहानी से आपको यह बताना चाहता हु की जब एक हजार लोगों को मारने का प्रण लेने वाला नौ सौ निनानवे पर सन्यासी हो सकत है तो दुनिया का कितना भी बुरा इंसान अपने विचार को बदलकर अपने जीवन में आगे क्यों नहीं बढ़ सकता।


Comments
Post a Comment