मूर्तिकार की कहानी।Hindi short story murtikar ki-
एक गांव में बेहद खूबसूरत मूर्ति बनाने वाला मूर्तिकार रहता था। जिसका नाम जगदीश था। वह वर्षों से एक झोपड़ी में मूर्तियां बनाया करता और उसकी मूर्तियां भी बाजार में खूब बिकता था फिर बाद में पिछले कुछ समय से उसकी मूर्तियां बाजार में बिकना कम हो गया फिर भी वह हार नहीं मानता था।
जगदीश:- राम राम सरपंच साहब, काम तो ठीक ठाक ही चल रहा है लेकिन कुछ समय से ग्राहक ही नहीं आ रहे।
सरपंच:- बस इतनी सी बात, तुम्हारी परेशानी अभी दूर कर देता हूं। हमारे गांव में एक शिव का नया मंदिर निर्माण हो रहा है और उस मंदिर में शिवजी की मूर्ति स्थापित करना है गांव वाले चाहते है की वो शिव जी की मूर्ति तुम बनाओ जिसके लिए तुम्हे उचित दाम भी मिलेगा।
जगदीश(खुशी से):- बहुत बहुत धन्यवाद सरपंच साहब। मैं आज से ही मंदिर के लिए सुंदर मूर्ति बनाना शुरू कर दूंगा।
सरपंच:- बहुत अच्छा, मै एक सप्ताह बाद आऊंगा और मूर्ति लेकर जाऊंगा तुम मूर्ति बनाना शुरू कर दो।
(अब सरपंच जी अपने गांव की ओर चले जाते हैं)
जगदीश अब तुरन्त जंगलों में चले जाते है और एक सुंदर पत्थर खोजने लगता है। तभी उसे एक पत्थर दिखता है तो उसे उठा लेता है और घर की ओर चल देता है कुछ दूर जाता है तो एक और पत्थर दिखता है, उसे भी उठा लेता है और फिर अपने घर आ जाता है। कुछ देर अराम करके खाना खाकर वो मूर्ति बनाने के लिए चले जाते है। वह पत्थर उठाकर जैसे ही चेनी-हथौड़ी से प्रहार करता है तो तुरन्त पत्थर से चीखने की आवाज निकालने लगती है और पत्थर बोलता है कि मुझे मत मारो बहुत दर्द हो रहा है।
पत्थर के इतना कहने पर जगदीश को दया आ गई और उसे साइड में रख दिया फिर वो दूसरा पत्थर उठता है और उसे मूर्ति में तरासना शुरू कर देता है देखते ही देखते वह शिव जी की सुंदर सी मूर्ति बना देता है और इसके एक सप्ताह भी पूरा हो चुका है। उधर से गांव के सरपंच जी और उनके साथ कुछ लोग आते है। सरपंच जी बोलते है मुर्तिकार से ओ भाई जगदीश मूर्ति बन गई है न।
जगदीश:- राम राम सरपंच जी, हां मूर्ति तो बनकर तैयार है।
सरपंच जी जगदीश को उसके पैसे दे देते है और जैसे ही मूर्ति लेकर चलते है तो गांव के एक आदमी की नजर वहां रखे एक पत्थर पर पड़ता है और बोलता है कि इसे भी ले लेते है नारियल फोड़ने का काम आ जाएगा। बाद में उस पत्थर जो चोट खाने से डरता था और मूर्ति को भी अपने साथ लेकर चले गए। कुछ दिनों बाद शुभ मुहूर्त पर बड़े ही धूमधाम से मूर्ति को स्थापित किए।
जिस स्थान पर मूर्ति को रखा था उसके ठीक नीचे उस डरपोक पत्थर को भी रख दिया नारियल फोड़ने के लिए । मूर्ति की खूब पूजा अर्चना होता फूल चढाते तो वही दूसरी ओर रखे डरपोक पत्थर पर खूब नारियल फोड़ते थे। डरपोक पत्थर शिव की मूर्ति की ओर देखकर बोलता है ये कैसा अन्याय है तुम्हे लोग फूल चढाते है और मुझपर नारियल फोड़ते है आखिर हमदोनों तो पत्थार ही है।
मूर्ति बोलता है:- हा हमदोनो तो पत्थर ही है लेकिन जब तुम्हे मूर्तिकार ने तरासना शुरू किया तो तुम चोट खाने से डरने लगे तुमने अपना मौका गवा दिया। अगर मौका नहीं जाने देते तो आज मेरी जगह पर तुम पूजे जाते।
इतना सुनने के बाद डरपोक पत्थर कुछ नहीं कहता और वैसे ही नारियल का चोट सहते रहता। उसपर रोज नारियल फोड़ने से उसका पत्थर को बहुत ही सुकून पहुंचाता था फिर उस पत्थर पर भी थोड़ा मिठाई रख देते थे। अब मूर्ति की कही बात उस डरपोक पत्थर को समझ आ गया कि अगर मैं चोट खाने से न डरू तो बहुत कुछ पा सकता हु।
इस कहानी के माध्यम से ये बताना चाहता हु यही हमारे जीवन की भी नियम है कि हम मुश्किलों स नहीं डरना चाहिए बल्कि उसे डटकर सामना करना चहिए जिससे कि हम अपने जीवन में सभी मनोकामना पूरा कर सके। मुझे आशा है कि आपको ये hindi short story बहुत ही प्यारा लगा होगा अगर अच्छा लगे तो कृपया अपने दोस्तो के साथ शेयर कीजिए।

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