महात्मा बुद्ध की कहानी :-
नगर का राजा शुद्धोधन जो बहुत ही कुशल राजा था। उसका कोई संतान नहीं था कुछ समय बाद थोड़ा बूढ़ा होने पर उसका एक संतान जन्म लिया जब बहुत समय के बाद उनका एक बेटा हुआ तो वे खुशी से झूम उठे और अलग अलग देशों से ज्योतिष एवं पंडितो को अपने घर पर आने के लिए निमंत्रण दिए क्योंकि उनके बेटे का नामकारण और बेहतर भविष्य के लिए। नामकारण का समारोह शुरू हुआ और उनके पुत्र का नाम
सिद्धार्थ हुआ फिर शुद्धोधन ने पूछा कि अब इसका भविष्य बताओ कि यह आगे चलकर क्या करेगा? 90% ज्योतिष ने कहा कि सन्यासी हो जाएगा 10% ने कहा की राजा हो जाएगा तो उसी में एक बारह साल का ज्योतिष जिसका नाम गुद्न्ना था उसने राजा से कहा कि, मैं स्पष्ट तौर पर कहता हूं कि तेरा बेटा सन्यासी होगा। यह बात सुनकर राजा को बड़ी ठेस पहुंची बहुत क्रोध हुआ कि बुढ़ापे में एक लड़का हुआ वो भी सन्यासी हो जायेगा, फिर मेरा राज पाठ कौन देखेगा। राजा ने ज्योतिष से पूछा इसका उपाय क्या है?
ज्योतिष ने कहा- उपाय बड़ा ही सरल है इसको हमेशा भ्रम में रखो पूरे जीवन भर क्योंकि इसे जिस दिन दुःख या पीड़ा का एहसास हुआ यह लड़का सन्यासी हो जायेगा।
राजा ने बोला- मैं क्या करूं कुछ समझ में नही आ रहा।
ज्योतिष:- इस लड़के के साथ प्रपंच रचो। यह जिस घर में रहता है उस घर में इसे हर तरह का सुविधा दो। गर्मी रहते सर्दी का एहसास न हो, सर्दी रहते गर्मी का एहसास न हो। इस लड़के को चारो ओर से लड़कियों से घिरे रखो। इसके इर्ध गिर्द झूठा संसार रखो और इसको पता नहीं चलना चाहिए कि दुख नाम का कोई चीज होता भी है सबसे जरूरी बात की इसे बूढ़े व्यक्ति से, पीले पत्तियों से, मृतसइया से और संन्यासियों से दूर रखो क्योंकि जिस दिन इसे ये सब दिखा इसे सन्यासी होने के लिए आकर्षित करेंगे।
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जिस प्रकार ज्योतिष ने बोला था राजा ने वे सभी काम कर दिया था अपने बेटे को वे सभी सुविधा दी पूरे एसो आराम की जिंदगी दी।
वो दिन आया जिसमें युराज अपने नगर के सैर पर निकले। चुकी राजा ने आदेश दे रखा था नगर को की जिस रास्ते से सिद्धार्थ जाएगा वहां कोई बूढ़ा व्यक्ति, बीमार व्यक्ति, मृत सइया , पेड़ो की पीले पत्ती ना दिखे। जब सिद्धार्थ का सारथी सिद्धार्थ को रथ पर बैठकर बाहर निकले। निकलते निकलते वो समय आया जब सिद्धार्थ को पहली बार एक बूढ़ा व्यक्ति को देखा जो कि झुक कर चल रहा था। सिद्धार्थ ने सारथी से पूछा ये झुक कर क्यों चल रहा है।
सारथी:- महराज मुझे आज्ञा नहीं की मै इस संदर्भ में कुछ बोलू।
सिद्धार्थ:- मै आज्ञा देता हूं अगर नहीं बताया तो तुरंत तेरी गर्दन उड़ा दी जाएगी।
सारथी:- महराज ये बूढ़ा हो गया है ये बुढ़ापा का समय है जो जवानी के बाद का एक अवस्था है।
सिद्धार्थ:- क्या मैं भी एक दिन बूढ़ा हो जाऊंगा ?
सारथी:- हां! महाराज एक दिन सबको बूढ़ा होना है।
फिर सिद्धार्थ ने सारथी से कहा रथ आगे बढ़ाओ कुछ दूरी पर चलने के बाद उसे एक मृत व्यक्ति को देख जिसे कुछ लोग लेकर जा रहे थे।
सिद्धार्थ:- सारथी रथ रोको और बताओ की ये क्या है जिसे कुछ लोग ले जा रहे है?
सारथी:- ये आदमी मर चुका है इसलिए इसे बांध कर ले जा रहे है ये बूढ़ापे के बाद का अवस्था होता है।
सिद्धार्थ:- क्या मैं भी एक दिन मर जाऊंगा ?
सारथी:- हा महराज जो इस दुनिया में आया है उस एक दिन मरना ही है।
सारथी ने फिर रथ आगे की ओर बढ़ाया आखिरकार सिद्धार्थ ने वो देखा जो उसे देखने के लिए मना था उसने एक गेरूए रंग के वस्त्र धारण करके चलते हुए सन्यासी को देखा।
सिद्धार्थ:- रथ रोको और बताओ की उस व्यक्ति ने इस रंग के कपड़े क्यों पहने है?
सारथी:- महराज ये व्यक्ति सन्यासी है क्योंकि इसके जीवन में दुख, पीड़ा, कलेश है उसने अपना सब कुछ छोड़ सन्यासी हो गया है।
सिद्धार्थ:- रथ को वापस घर की तरफ ले चलो।
वे फिर नगर की सैर पर नहीं गए आधे रास्ते से ही वापस चले गए और उसी रात अपने घर बार छोड़कर चले गए और सन्यासी हो गए। सिद्धार्थ के जीवन में एक चीज बदली और वो है विचार । जब सिद्धार्थ सन्यासी होने के बाद अपने घर वापस आए और अपने घर का दरवाजा खटखटाया तो उसकी मां यशोधरा ने दरवाजा खोला उसे देखते ही तुरंत पहचान गई और फुट फुट कर रोने लगी तो बुद्ध न कहा कि जो लड़का गया वो सिद्धार्थ था वो आपका बेटा था लेकिन मै बुद्ध हूं।
ये पूरी कहानी मे कहने का अर्थ यह है कि एक विचार आपकी जिंदगी मे भूचाल ला सकता है।

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