तीन प्रेमी और एक प्रेमिका की अनोखी कहानी-
एक नगर का राजा विक्रमादित्य एक बरगद के पेड़ के पास जाते है तो वहां उसे बेताल नाम का एक प्रेत मिलता है जो उसके कन्धे पर बैठ गया और उसे एक कहानी सुनाने लगा। कहानी कुछ इस प्रकार है-
ढोलकपुर नामक गांव में एक आचार्य जी रहते थे जो बहुत ही कुशल एवं सम्पन व्यक्ति थे उनके परिवार में केवल उनकी एक पुत्री रहती थी जो बहुत ही सुशील एवं खूबसूरत थी। आचार्य जी अपने आश्रम में कुछ लोगो को पढ़ाया करते थे और उनके तीन सबसे योग्य एवं विद्वान शिष्य थे जो अपने आचार्य के प्रति आदर सम्मान एवं निष्ठावन थे। उनके वे तीनों शिष्य आचार्य की पुत्री से प्रेम करते थे। यह बात आचार्य जी को पता चला लेकिन वे कुछ कह नहीं पाए अपने तीनों शिष्यों से क्योंकि उन्हें लगता था कि हमारे तीनों शिष्य तो योग्य एवं विद्वान है परन्तु ये पता नही चल रहा कि विवाह किससे किया जाए।
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और सबसे जरूरी बात की उनकी पुत्री को भी यह बात पता थी कि व तीनों मुझसे प्रेम करते है। लेकिन उसको भी यह नहीं समझ आ रहा कि विवाह किससे करूं क्योंकि योग्य तो तीनों है।
पिता और पुत्री दोनों बड़े ही उलझन मे थी कि विवाह किससे किया जाए?
पुत्री को जब कुछ समझ नहीं आया तो वह एक दिन आत्महत्या कर ली। जब लड़की ने आत्महत्या कर ली तो तीनों काफी निराश हुआ दुःख जताया उसे लेकर गए दाह संस्कार किया तो,
पहला शिष्य ने वहीं तुरंत सन्यासी हो गया वे वहीं बैठ गया जहा उसका दाह संस्कार हुआ। अब वे पूरा जीवन तपस्या करते जीवन बिता दिया।
दूसरा शिष्य फकीर बन गया घूमने लगा देश-विदेशाें में क्योंकि उस पता था कि कुछ संत है जो मृत व्यक्ति को जिंदा करने का मंत्र जानते होंगे।
तीसरा शिष्य वह रोज उस स्थान पर जाता था जहा उसका शरीर था वहां जाकर मिट्टी से लेपता था, फूल मला चडाता था खूब सेवा करता था।
यही सिल सिला तीन चार वर्षो तक चलता रहा ।
उसका वो दूसरा शिष्य जो फकीर बना था वह एक दिन घूम ही रह था तो तभी उसे एक महात्मा मिले जो पुनः जीवित करने का मंत्र जानते थे। दूसरा शिष्य ने महात्मा की खूब सच्चे मन से सेवा की तो उसको पुनः जीवित करने वाला मंत्र सीखा दिया। जब उसके हाथ मंत्र लगा तो वो भागा-भागा उस स्थान पर गया जहां उसका दाह संस्कार हुआ और उसे उस मंत्र से पुनः जीवित कर दिया। अब युवती फिर से जिंदा हो गई और वो पहले से भी सुन्दर हो गई।तीनों शिष्य फिर से खड़े हो गए।
आखिरकार अंत में बेताल ने विक्रमादित्य से सवाल पूछा की अब बताओ कि उस युवती तीनों शिष्यों मे से किससे विवाह करेगी ? विक्रमादित्य अगर तेरे मन में उत्तर आ रहे है और नहीं दिया तो तेरे सर के टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे और तूने जवाब दे दिया तो मै चला जाऊंगा।
पहला शिष्य जो फकीर बना था और मंत्र से पुनः जीवित किया वो पिता तुल्य है क्योकि जीवन देंना पिता का कार्य होता है इसलिए विवाह नहीं करेगी।
तीसरा शिष्य जो उसे रोज आकर सेवा करता था वो पुत्र तुल्य है क्योंकि सेवा करना पुत्र का धर्म है इसलिए विवाह इससे भी नहीं करेगी।
और जो उनका पहला शिष्य था जो अपना सब कुछ छोड़ सन्यासी हो गया अपना जीवन दाव पर लगया वहीं प्रेम की कसौटी है विवाह तो उससे ही होना चाहिए।
जैसे ही विक्रमादित्य ने ये उत्तर दिया बेताल उसके कंधे पर से चला गया क्योंकि उसने सही उत्तर दिया था।
मुझे पूरा उम्मीद है कि आपको इस प्रेम कहानी पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा होगा और इसे शेयर भी करेंगे तभी दूसरे लोग इस प्रेम कहानी को पढ़ सकेंगे।

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