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चार मित्रो की कहानी। Friendship Short story

 कई साल पहले चार घनिष्ठ दोस्तों ने एक ही स्कूल में एक साथ बोर्ड तक पढ़ाई की .। 


जहाँ वे रहते थे, उस शहर में सिर्फ़ एक ही अच्छा होटल था..।


बोर्ड परीक्षा ख़त्म होने के बाद उन चारों दोस्तों ने तय किया कि हमें उस होटल मे एक साथ चाय-नाश्ता कर कुछ पलों को साथ बिताते हुए उसे यादगार बनाना चाहिए..

Friendship


उन चारों ने मिलकर मुश्किल से चालीस रुपये जमा किए, रविवार का दिन था, साढ़े दस बजे वे चारों साइकिल से उस होटल में जा पहुंचे।..


दिनेश, संतोष, मनीष और प्रवीण चाय-नाश्ता करते हुए एक दूसरे से बातें करने लगे..


कुछ देर बाद उन चारों ने सर्वसम्मति से ये फैसला किया कि आज से ठीक पचास साल बाद हम 01 अप्रैल को इस होटल में फिर मिलेंगे..तब तक हम सब को बहुत मेहनत करनी चाहिए औऱ यह देखना दिलचस्प होगा कि जीवन में किसकी कितनी प्रगति हुई .....जो दोस्त उस दिन सबसे बाद में होटल आएगा , उसे ही होटल का बिल चुकाना होगा..

     

उनको चाय नाश्ता परोसने वाला वेटर कालू यह सब सुन रहा था, उसने कहा कि अगर मैं यहां रहा तो मैं भी इस होटल में आप सब का इंतजार करूंगा..


आगे की शिक्षा के लिए चारों अलग अलग हो गए..

   

दिनेश के पिता के ट्रांसफर होने पर वह शहर छोड़ चुका था, संतोष आगे की पढ़ाई के लिए अपने चाचा के पास चला गया, मनीष और प्रवीण को शहर के अलग-अलग कॉलेजों में दाखिला मिला..


कुछ वर्षों बाद मनीष भी शहर छोड़कर चला गया..

     

दिन, महीने, साल बीत गए..

  

पचास वर्षों में उस शहर में आमूल-चूल परिवर्तन आया, शहर की आबादी बढ़ी, सड़कों, फ्लाईओवर, गगनचुंबी इमारतों ने बदल दी शहर की सूरत..

  

अब वह होटल फाइव स्टार होटल बन गया था, वेटर कालू अब कालू सेठ बन गया और साथ ही होटल का मालिक भी...

      

पचास साल बाद, निर्धारित तिथि, 01 अप्रैल को दोपहर में, एक लग्जरी कार होटल के गेट पर आई..


दिनेश कार से उतरा और लॉबी की ओर चलने लगा, दिनेश के पास अब तीन ज्वैलरी शो रूम थे..


दिनेश होटल के मालिक कालू सेठ के पास पहुंचा, दोनों एक दूसरे को देखते रहे..


कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर ने आपके लिए एक महीने पहले ही एक टेबल बुक किया है..


दिनेश मन ही मन सोच रहा था कि वह चारों में से पहला था, इसलिए उसे आज का बिल नहीं देना पड़ेगा ।


एक घंटे में संतोष आ गया, संतोष शहर का बड़ा बिल्डर बन गया था.

और पढ़ें-Jadugar ki kahani

अब दोनों बातें करते हुए दूसरे मित्रों का इंतजार कर रहे थे, तीसरा मित्र मनीष आधे घंटे में आ गया..


उससे बात करने पर दोनों को पता चला कि मनीष बड़ा बिजनेसमैन बन गया है..


तीनों मित्रों की आंखें बार बार दरवाजे पर जा रही थीं, प्रवीण कब आएगा..??


इतनी देर में कालू सेठ ने कहा कि प्रवीण सर की ओर से एक संदेश आया है, तुम सब चाय का नाश्ता शुरू करो, मैं आ रहा हूं..


तीनों पचास साल बाद एक-दूसरे से मिलकर खुश थे..


घंटों तक हंसी मजाक चलता रहा, लेकिन प्रवीण नहीं आया..

 

कालू सेठ ने कहा कि फिर से प्रवीण सर का मैसेज आया है, आप तीनों अपना मनपसंद मेन्यू देखकर खाना शुरू करें..


तीनों ने खाना खा लिया तो भी प्रवीण नहीं दिखा, बिल मांगते ही तीनों को जवाब मिला कि ऑनलाइन बिल का भुगतान हो चुका है..

       

शाम के आठ बजे एक युवक कार से उतरा और भारी मन से निकलने की तैयारी कर रहे तीनों मित्रों के पास पहुंचा, तीनों उस आदमी को देखने लगे..


युवक कहने लगा, मैं आपके दोस्त प्रवीण का पुत्र रवि हूं । 


पिताजी ने मुझे आप सब के आने के बारे में विस्तार से बताया था, उन्हें इस दिन का बहुत बेसब्री से इंतजार था, लेकिन पिछले महीने एक गंभीर बीमारी के कारण उनका निधन हो गया..


उन्होंने मुझे आपलोगों से आज के दिन कुछ देर से मिलने के लिए कहा था ताकि आपलोगों को ये तुरंत मालूम न पड़ जाए कि उनका निधन हो चुका है । उनका मानना था कि ये जानकर आपसबों को बहुत दुख होगा औऱ तब उनके दोस्त नहीं हंसेंगे और वे इतने अरसे के बाद एक-दूसरे से मिलने की खुशी खो देंगे..


इसलिए उन्होंने मुझे देर से आने की सख़्त हिदायद दी थी ..

 

उन्होंने मुझे उनकी ओर से आप सबों के पैर छूकर गले लगाने के लिए भी कहा था ,ये कहते हुए रवि ने अपने दोनों हाथ फैला दिए..


आसपास के लोग उत्सुकता से इस दृश्य को देख रहे थे, उन्हें लगा कि उन्होंने इस युवक को कहीं देखा है..


    

रवि ने फ़िर कहा कि मेरे पिता एक आदर्श शिक्षक बने और मुझे पढ़ाकर कलेक्टर बनाया, आज मैं इस शहर का कलेक्टर हूं..

   

सब चकित थे, कालू सेठ ने कहा कि अब पचास साल बाद नहीं, बल्कि हर पचास दिन में हम अपने होटल में बार-बार मिलेंगे, और हर बार मेरी तरफ से एक भव्य पार्टी होगी..


सभी ने एक दूसरे को गले से लगा लिया ।


.............


अपने सगे-सम्बन्धियों औऱ दोस्तों से मिलते रहे , उनसे मिलने के लिए बरसों का इंतजार मत करें , जाने किसकी बिछड़ने की बारी कब आ जाए और पता भी नही चले.....अपनों के हमेशा क़रीब रहें औऱ उन्हें अपने साथ होने का भावनात्मक एहसास दें............... ।


क्या भरोसा है ज़िंदगानी का...

आदमी बुलबुला है पानी का...!!

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